एक वो दौर था, एक ये दौर है
एक वो दौर था, एक ये दौर है
एक वो दौर था, एक ये दौर है।
कितना कुछ अब बदल गया है,
बेफ़िक्र भी अब सँभल गया है,
सूनी पड़ी हैं बरगद की शाखें,
बचपन वो अब निकल गया है,
भूलकर वो मासूम ऊधम अब,
जीवन आपही बन गई दौड़ है,
एक वो दौर था, एक ये दौर है।
श्वेत क़मीज़ पर माटी का इत्र था,
धड़ पकड़ का वो खेल विचित्र था,
वो नंगे पाँव में कीचड़ मलकर,
यूँ ही जाना मीलों पैदल चलकर,
अब रोज़ी रोटी के चक्कर में,
ना खेल पर ना सेहत पर ग़ौर है,
एक वो दौर था, एक ये दौर है।
दोस्तों संग घन्टों गप्पें करना,
साथ में उठना साथ में बैठना,
व्यस्त रहते भी उनका सारा वक़्त अपना था,
सोच अलग पर आँखों में एक ही सपना था,
ज़िन्दगी है जब तक, दोस्त रहेंगे
पर वक़्त के बहाव में सारे दोस्त बिछड़ गए,
अब कल कोई और था आज कोई और है,
एक वो दौर था, एक ये दौर है।
