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एक विषय

एक विषय

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कवि को एक

विषय मिलता है

या विषय चुनता है।

कुछ सोचता है

विचार करता है।

शब्दों को जोड़कर

पंक्ति बनाता है।

आगे बढ़ता है।

गड़बड़ लगा तो

काटता छांटता है।

फिर लिखता है।

अन्तर्मन के विचारों 

को टाईप करता है।

धीरे - धीरे रचना बनती है।

जीवन में दो बार

लकवा लगने के कारण

याददाश्त कुछ कमज़ोर

पड़ती जा रही है।

पल - पल में भूल जाता है।

टेबल पर रखी चाय

पीना भी भूल जाता है।

पत्नी दोबारा टोकती है।

तब चाय पीता है।

फिर लिखने में

मन लगाता है।

रचना तैयार होती है।

वाट्सएप मंचो पर 

पोस्ट करता है।

बधाईयाँ मिलती है।

कुछ टोका - टाकी भी

चलती रहती है।

कुछ कविता कहते हैं

कुछ निबंध कह देते हैं 

कुछ लेख भी कहते हैं।

इस तरह के ज्ञानी

महान विद्वान सदस्य

रचना का पोस्टमार्टम

अपने हिसाब से करते हैं।

कविता है, कहानी है

लेख है, निबंध है।

फिर भी साहित्य तो है।

गद्य है, पद्य है, रचना तो है।

विषय पर दी हुई

कवि विचारों की

कवि की कल्पना तो है।

एक विषय की रचना है।

   


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