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Babita Shukla

Inspirational

3.7  

Babita Shukla

Inspirational

एक टुकड़ा रोटी का

एक टुकड़ा रोटी का

1 min
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सुनसान राहों पर दौड़ाता,

सारा सारा दिन भगाता,

सुलगती धूप में जलाता,

दिन में भी तारे दिखाता,

आंधी बारिश सब कुछ सहता, 

इसके पीछे भागता जाता,

तब जाकर है मिल पाता एक टुकड़ा रोटी का।।1।।


गली-गली में घूमता रहता,

इधर उधर से मार सहता,

'कुकुर- कुकुर' दुनिया भगाती,

टुकुर- टुकुर ताकते रहता,

पीछे- पीछे भागता रहता, 

तब जाकर है मिल पाता एक टुकड़ा रोटी का ।।2।।


पंख खोल कर दिन भर उड़ते,

सब के आंगन में चहकते,

एक-एक दाना चोंच में रखते,

डाली- डाली रहे फुदकते,

सांझ हुई डेरों पहुंचते,

चूजे रहते राह तकते,

ची ची करके खूब फुदकते,

तब जाकर मिल पाता है एक टुकड़ा रोटी का।।3।।


कोई लुटता, कोई लूटता,

पर इसका ना मोह टूटता,

किसी के दिन का चैन जाता,

कोई सारी रात जागता,

कोई भरी थाली ठुकराता,

कोई कचरे से बीन के लाता,

फिर भी भूख मिटा ना पाता,

बिन खाए भी बेसुध हो जाता,

गली गली की खाक छानता,

तब जाकर है मिल पाता एक टुकड़ा रोटी का।।4।।


रोटी की कीमत पहचानो,

सस्ता इसको कभी ना जानो,

रात रात भर जाग- जाग कर,

इसके पीछे भाग- भागकर,

बचा- बचा कर थोड़ा- थोड़ा, 

दाने-दाने को जब जोड़ा, 

तब जाकर है मिला निवाला,

आशियाने में हुआ उजाला,

कितना जोड़ा कितना संभाला,

तब जाकर है मिल पाता एक टुकड़ा रोटी का।।5।।   


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