नशा
नशा
धूप भी जिस्म को तपा न सके
भटके इस तरह के घर जा ना सक
दो पल को आंख खोली नजर टिमटिमा गई
उजाले से एक पल भी नजर मिला ना सके
जाने कौन सी गली में घरोंदा है हमारा
गली में पहुंचे पर दरवाजे तक जा ना सके
यह नशा जीवन में समाया कुछ इस तरह
हम कौन हैं यह हम खुद बता ना सके
बताने वालों की भी नजरें झुकी
जिन से नाता था हमारा
रिश्ते मगर खून के वह मिटा ना सके
सिमट कर रह गए हम नशे के शहर में इस कदर
जीते जी हम किसी को अपना बना ना सके
खुद तो बिखर बिखर के टूटे
और तोड़ दिया खुद से जुड़े लोगों को इस कदर
की मरते मरते भी हम उनको थोड़ा सा लुभा ना सके
जब गए इस जहां से तो मगरूर थे इतने
कि जाते-जाते किसी को थोड़ा सा रुला ना सके
भटके इस कदर कि घर जा ना सके।
