बचपन
बचपन
आ लौट कर आजा, मेरे बचपन,
खिलखिला कर, हँसा जा मेरे बचपन ,
झुकी हुई पेड़ों की डाली पर लटकना,
धूल भरी जमीन पर गिरकर तड़पना,
झूलों पर उल्टा लटकना,
यह अल्हड़पन पड़ोसी को खटकना,
वह मंजर अब भी आंखों में समाया है,
कभी दिल से ना जाना मेरे बचपन,
दोस्ती के लिए दोस्तों से झगड़ना,
गणित के सवालों को चबाकर निकलना,
पापा जी से पिटकर मम्मी से भी पिटना,
खाना पीना छोड़ कर भूख हड़ताल करना,
फिर सबका मना-मना कर खाना खिलाना,
फिर वही जीत का एहसास दिला मेरे बचपन ,
आ लौट कर आजा मेरे बचपन,
खो गए हैं खेल खिलौने,
छूट गया रूठना मनाना ,
जिंदगी के वो पल मुश्किल है भुलाना,
खोते चले गए जिंदगी की घनी बस्ती में कहीं,
शायद कभी नहीं होगा अब उन राहों पर जाना,
मुस्कुरा उठा दिल और गुनगुनाने लगे हम ,
कल फिर सपनों में आना मेरे बचपन,
आ लौट कर आजा मेरे बचपन ।