STORYMIRROR

Babita Shukla

Others

4  

Babita Shukla

Others

मंजिल

मंजिल

1 min
150

ना आ सके हम लौटकर,

उस मंजिल तक कभी,

जिसे ठुकरा कर बढ़ गए थे,

तलाश में नए जहां की

थक कर पलट कर देखा,

दूर-दूर तक देखा ,

हमारे कदमों के निशान तक नहीं थे कहीं ,

धूल भरी आंधी या बरसातों के मंजर,

जाने कौन मिटा गया था ,

मेरी ठुकराई हुई मंजिल के निशां ,

पाया है जिसे, सहेज कर दिल के करीब रख लो ,

फिर थामकर दामन को, आधे दरवाजे से देखना, आगे कीओर,      

फिर थामना आंचल का कोई और छोर,

ठुकराना नहीं मिला हुआ जहां,

कहां मिलेंगे कभी पीछे छूटे कदमों के निशां,

बस पूछते रहेंगे हम जाने कहां है

छूटी हुई मंजिल का पता ।।


       



Rate this content
Log in