काल चक्र
काल चक्र
सादा जीवन उच्च विचार,
संतों ने कभी सिखाया था,
मद - मांस का सेवन वर्जित,
यह सद पाठ पढ़ाया था,
मूक पर दया, भूखे को दान,
बार-बार बतलाया था,
स्वच्छ मन हो स्वच्छ तन हो,
जीने का ढंग बताया था ।।1।।
मानव कुछ कुछ भूल गया,
धरा लगी कराहने ,
नहीं सहा जाता यह जहर,
आओ प्रभु मुझे थाम ने,
हर प्राणी की माता हूं मैं,
हर प्राणी मुझे प्यारा है,
पर तेरी अनुपम कृति पर प्रभु,
विकट राक्षस की छाया है ।।2।।
सबसे सुंदर तेरी रचना,
सबसे सुंदर मेरी रचना,
टूट टूट कर बिखर रही है,
मुश्किल लगता है बचना,
माता का हृदय पुकार रहा,
त्राहिमाम त्राहिमाम,
प्रभु अब अवतार लो,
अपने वचन की लाज रखना ।।3।।
जब जब होगी धर्म की हानि,
धरती पर मैं आऊंगा,
मानव मेरी अनुपम कृति है ,
यह मिट सकती नहीं,
माता धरा गोद तेरी ,
एक जहर से उजड़ सकती नहीं ।।4।।
हे धरा तुम धीर ना खोना,
आ गया मैं ले अवतार,
रूप बदलकर रंग बदल कर,
खड़ा हूं मैं तेरे द्वार,
दीप जले घंटा बजे,
हो गया है शंखनाद,
वर्दी पहनकर स्वयं खड़े हैं शेषनाग,
श्वेत वस्त्र में रघुनंदन है रक्षा बल में तैनात,
नीलवस्त्र मे सेवा देने देवी देवता आए आज ।।5।।
धरनी - जननी संतों का सद आरंभ हो गया,
कालचक्र तो देख माता,
सतयुग प्रारंभ हो गया,
सतयुग प्रारंभ हो गया ।।6।।