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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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एक ठोकर

एक ठोकर

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जीवन मे एकबार ठोकर लगनी चाहिए

पानी में एकबार आग लगनी चाहिए


तब जाकर तुझे पता चलेगा साखी,

एक आंसू की कीमत पता चलनी चाहिये


कोई अपना नही है, पर सब सपना नहीं है

खुद की अहमियत ख़ुद समझनी चाहिये


आज नहीं तो कल तेरा भी वक्त होगा

बुरे समय में दीपक बुझना नहीं चाहिये


सही समय पर हमें सही फैसला लेकर,

संघर्ष में सुखी रोटी भी मेवा करनी चाहिये


हर रात के बाद सवेरा जरूर होता है

अंधेरे मे सब्र की मोमबती जलानी चाहिये


विजय वो होगा, जिसका संकल्प दृढ़ होगा

तेरी सोच बस हिमालय जैसी होनी चाहिये।


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