एक तस्वीर से मुलाकात
एक तस्वीर से मुलाकात


है एक तस्वीर, रखी खिड़की के पास है,
वह शख्स बड़ी ही दिलचस्प और खास है,
देखती वह रोज, लेती सबका हाल-चाल है,
हल्की सी मुस्कुराहट, दिल में छुपाई अरमान है।
हाँ, है वह बस एक तस्वीर पर कहानी जानदार है,
सपनों सा हकीकत की दहलीज पर रखती कदम शानदार है।
नहीं-नहीं! कोई विरासत तो नहीं, ये तो अपनों का आशीर्वाद है,
मुश्किलें है कई बड़ी, पर सामना कर जाने का एहसास है।
रूक जाने, थक जाने, टूट जाने का कोई इरादा रखा ना पास है,
हौसलों के साथ 'प्रेरक' का सिर पर रखा हाथ है।
पर एक मोड़ पर... आई एक तूफान
थम सी गई, शिथिल पड़ी जुबान
मेहनत का कोई असर न पड़ा जान
मानो रूक गया हो ये जहान...
लाख कोशिशों पर भी कोई कमी सी तो रही,
कोई तरीका कोई सलीका, सब रही धरी की धरी।
आखिर समझ ही नहीं आई क्या बात है,
दिखता नहीं रोशनी, अब हर तरफ रात है,
आसपास लोग करते बड़े परिहास है,
फिर भी 'स्वावलंबन' की लगी प्यास है।
शायद मंजिल तक पहुंचने का यह अंतिम पड़ाव है,
मंजिल बस सामने ही है, तो फिर क्यूँ इतना घुमाव है !
सपना और हकीकत दिखता क्यों नहीं एक समान है,
क्या अब हार जाना ही एकमात्र चुनाव है !
जब आया नहीं
कुछ नजर सामने और डरने लगा मन है,
सहसा ही एक आवाज उठी मन में, कहती 'ये जीवन का तरंग है'
'कभी ऊपर कभी नीचे लेती परीक्षा तुम्हारी हर पल है।
यह है कुछ पल कठिनाई के, इन्हें टल ही जाना है,
पर किस तरह करना है सामना इनका, यही तो सीखना है।
जरूरी नहीं, हर उठती कदम को नर्म सी तख्त ही मिलेंगे,
काँटों से होगा सामना तभी तो पैर सख्त बनेंगे।
मंजिल ना मिले तो यही जीवन का अंत नहीं है,
इनसे लेंगे सिख, तभी तो हम योग्य बनेंगे।
जैसे तपता सोना तपस को जान लेती है,
आभूषण बनने से उसे कोई न रोक सकती है।
मान ले अगर हम भी मुश्किलों को अपना मित्र,
महक उठेंगे स्वयं ही, जैसे सुगंधित इत्र'।
इन हौसलों को खुद में भरकर चल दिया अपने पथ पर ज्यों,
मंजिल के घुमाव भी सीधे मालूम पड़ने लगे त्यों।
अब आसान लग रहा चलना और मंजिल की फिक्र नहीं है,
चमकना ही है एक दिन, इस विश्वास की कमी नहीं है।
सम्भवत ही तस्वीर की मुस्कुराहट जीत बयान करती है,
अजी मंजिल को पाने की नहीं, जीत सर्वथा चलते रहने की है।
हाँ, वह है एक तस्वीर, पर मुझे मुझसे मुलाकात कराती है,
संघर्ष की टेढ़ी-मेढी गलियों में, सकारात्मकता का बोध कराती है।
हाँ.. वह है एक तस्वीर पर मुझे मुझसे मुलाकात कराती है।