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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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एक त्रासदी

एक त्रासदी

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झरना था

उसके बहने की आवाज

कविता जैसी थी,

हवा में खुशबू थी

सुधि बुद्धि खो देने के

सारे कुदरती प्रबन्ध थे।


पथिक प्यास था

पसीने से तरबतर था

निर्वस्त्र था

एक और त्रासदी थी

कानों में अफवाह का जहर था।


पानी विषैला है

पानी विषैला है

एक कशमकश थी

प्यास और अफवाह के बीच।


झरना था, बह रहा था

पथिक था

प्यासा था

देख रहा था झरने का

बहता हुआ पानी।


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