"एक शिक्षक की व्यथा"
"एक शिक्षक की व्यथा"
शीर्षक—"हे शिक्षक तुम चुप रहना "
नतमस्तक हो मौन व्यथा में,
हे शिक्षक तुम चुप रहना,
आधिकारिक आदेशों का पालन,
सहर्ष स्वीकार करते रहना ।
पुरखों के बलिदानों को मिटते,
देख कर भी तुम चुप रहना ,
मुगल, फिरंगी अत्याचार की ,
सत्य कथा तुम मत कहना ।
एक नमूना सा बन समाज में,
आंधी तूफान सहते रहना,
मानव –दानव बनता जाए ,
मूक –प्राणी बन चलते रहना ।
धर्म संस्कृति के अपमानों की,
उपमा सदा करते रहना ,
बना न पाओ धीर वीर तुम,
इच्छा मन में दबाए रखना ।
आकार घड़े का ना दे पाओ,
बस नाम अपना बनाए रखना,
उद्दंड निर्लज्जता की पीढ़ी को,
सम्मानित तुम करते रहना ।
अभिभावकों की खुशी देखकर,
सत्य ज्ञान भी मत देना ,
हो जाए नष्ट जीवन समाज ,
बस मन व्यथा छुपाए रखना।
संस्कारहीन न देख सको,
पर, हे! शिक्षक तुम चुप रहना,
हे शिक्षक तुम चुप रहना ।