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Shalinee Pankaj

Abstract Inspirational

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Shalinee Pankaj

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एक रिश्ता नदी और पत्थर का

एक रिश्ता नदी और पत्थर का

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कल तक कितना

लहराकर के चलती थी,

आज मृत्यु की बाट जोहती,

कितना बुरा वक्त है ये,

चाहकर भी हिल नहीं पा रही

अपनी जगह से

एक इंच भी।

बहना कल-कल मेरा स्वभाव था,

मेरा जीवन संचार था,

पर आज

ठहर गयी दरिया-सी,

मैं नदी जो निर्झरिणी बहती थी।

इस बुरे वक्त में

तुम साथ खड़े,

तेरा हाथ थामे ही तो जिंदा हूँ मैं अबतलक।


ये शैवाल की परत जो मुझपे जम गई है,

तुझमें उगी ये हरियाली 

हमारे साथ को अमर कर रही, 

दिखा रही हमारे एक रंग में रंगने को।

धीरे-धीरे सूर्य का ताप मेरा अस्तित्व मिटा देगा

पर खुश हूँ इस अंतिम पल तुम्हारा साथ है,

महसूस कर रही

कि जीवन में ठहराव भी

संजीदगी से लम्हों को जीना सिखाता है।

मौन हूँ इसलिए

महसूस कर रही

हर पल को अब।


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