एक रिश्ता दे जाओ
एक रिश्ता दे जाओ
जिंदगी कितनी उलझ सी गयी है।
अपनो को तो साथ लिया है मैंने
पर ये अनजाने रिश्तो का क्या करूँ
इस रिश्तों की पोटली को कहा खोलू
निभाते निभाते हर रिश्तों को
थोड़ी सी कभी तकलीफ दे गई
पर अपने थे, मान भी गयी
पर ये अनजाने रिश्तों की पोतली
को कहा खोलू
हर रिश्तो को दिल से निभाओ
दर्द दे सही, कुछ नजऱ अंदाज करो
नादानियां समझने का, एहसास दिखाओ
इस रिश्तों को अनजान ना कहो
कोई नाम दे जाओ
इस रिश्तों की पोटली को
एक रिश्ता दे जाओ।