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एक रात की बात

एक रात की बात

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बात बात पर वो बात याद आती है

एक औरत के संग गुज़री वो रात याद आती है

   

दूर खड़ी पर्दे की ओट से आधी सूरत दिख रही थी

धुंधले से चेहरे पर ज़ुल्फे घनघोर घटा-सी बिखरी थी

 

अधखुले वो लब उसके कुछ कहने को आतुर थे,

झुके-झुके से चंचल नैना बड़े ही चातुर थे

 

बुदबुदाती-सी आवाज़ यूँ आई जैसे धड़कन बोल रही हो

यूँ मानो मेरे इर्द गिर्द खुशियॉ ही खुशियॉ डोल रही हो

 

धीरे-धीरे से चल कर वो मेरे पास आई

कुछ ठिठक कर कुछ सकुचाई कुछ शरमाई

 

ग्लास भरा पानी का थमा गई वो हाथ में

एक पंखा लाई थी वो झलने अपने साथ में

 

जब हाथों ने हाथों को स्पर्श किया अनजाने में

यूँ लगा रात का सोया आँख खुली हो महखाने में

 

पसीने की बुदें लुढ़क रही थी मुख पर इधर-उधर

जैसे ओस की बुदें सज रही हो पत्तो पर

 

जी किया की हाथ से ले कर पंखा उसको झल दूँ

कोमल से उस चेहरे पर बूँदे अपनी हथेली से मल दूँ

 

बोल जो फुटे उसके मुख से तब मेरा ध्यान भंग हुआ

तब जाके कही मे वर्तमान के संग हुआ

 

लगी बैठने जड़ मे मेरे तब उसका आँचल मुख चूम गया

मखमली एहसास से मेरा तन मन खुश हो झुम गया

 

गुपचुप गुपचुप हो रही थी रात के गलियारे में

चादँनी भी छन-छन कर आ रही थी पर्दे के द्वारे से

 

खामोशी सी छाई थी उस कमरे की हवाओं में

जैसे एक साथ सभी फूल मुरझाए हो फिजाओं में

 

जी कर रहा था छाँट के रख दूँ चुप्पी के बादल को

अपने तन से लपेट लूँ उसके नशीले आँचल को।

 

बाहर से एक शोर-सा आया दोनो डर से गए

एक दुजे की बाँहों मे टुट कर बिखर से गए।

 

मेरी मन की मुराद जैसे पुरी होने को थी

एक तरफ चाँद की भी धुरी पुरी होने को थी।

 

दरवाजे की खटखट ने जुदा हमको किया

खुद को समेट कर मैने समझा मन को लिया।

 

चलने को हुआ जो मैं उसकी नज़रो ने रोक लिया

रुकना चाहता था मै भी पर खुद को रोक लिया।

 

वहां से तो चला आया पर मन वही छूट गया

नन्हा-सा दिल मेरा एक झटके मे ही टूट गया।

 

छूटा हुआ वो पल आज भी ज़हन के अन्दर है

आज भी बह रहा दिल में उस रात का समन्दर है।

 

बात-बात पर वो बात याद आती है

गज़री रात की वो बात याद आती है।

 

बात बात पर वो बात याद आती है

एक औरत के संग गुज़री वो रात याद आती है।


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