एक पत्र समाज के नाम
एक पत्र समाज के नाम
मैंने इस समाज के नाम
इक पत्र लिखा था,
ख़ुद के जज़्बातों का भी
मैंने बख़ूबी वर्णन किया था।
बलात्कार पर चुप्पी साधने व
प्यार के लिए शैतान बन जाने की
उस कहानी को भी मैंने बख़ूबी उकेरा था।
मैंने उस।
अब का समाज और पहले का
समाज भला कैसा हुआ करता था,
इन सभी पहलुओं को भी उसमें समेटा था।
वक़्त के साथ बदलते रहना
व इंसानियत को ज़िंदा रखना,
यही तो हमने उस
पुरातन समाज से सीखा था।
मैंने उसे।
