एक नन्ही सी परी रहती है
एक नन्ही सी परी रहती है
मेरे घर के आंगन में
एक नन्ही सी परी रहती है
कभी मुझे खूब हँसाती है
ओर कभी खूब सताती है
मगर फिर अपने मासूम से
चहेरे पर हसीं लाकर,
मेरे सारे गुस्से को
पल भर में भुला जाती है
कहने को भतीजी है मेरी
मगर बेटी सी बनकर रहती है
देख उसे जीवन रंगीन सा हो जाता है
जब ‘बुई जी‘ (बुआ)
कहकर वो बुलाती है।