एक नई पहचान !
एक नई पहचान !
क्या विकलांग नहीं हुआ करते इंसान ?
फिर क्यों लोग खाते हैं उन पर तरस ?
फेंकते हैं व्यंग्यों के बाण !
भगवान् कभी मत करो किसी को विकलांग।
क्योंकि ,ये जो तुमने बनाए हैं इन्सान ,
वे उनकी अपूर्णता पर हंसते हैं।
तरस खाकर उनकी उपेक्षा भी करते हैं ,
और तब वे अपने दर्द ,
व्यथा का ग्राफ चढ़ा पाते हैं।
इनकी विकलांगता बन जाती है अभिशाप ,
शारीरिक पूर्णता ही अक्सर होती है व्यक्तित्व की छाप।
लेकिन यदि वे एक आधा अधूरा इन्सान हैं ,
तो वह ढेर सारा तबका किनका है ,
जो हैं मन ,विचार और कर्म से विकलांग ?
फिर भी समझते हैं अपने को सर्वांग !
आयेगा ,अवश्य आयेगा वह नया विहान ,
जब नए सिरे से होगी इन्सान की पहचान।
बदलेंगी परिभाषाएं मनुष्य के मूल्याकन की ,
विकलांगता किसी की प्रगति में नहीं होगी बाधक ,
विकलांग भी माने जायेंगे सफलता के साधक !
लोग उन्हें नहीं मानेंगे एक आधा अधूरा इंसान ,
विकलांगता , सिर्फ विकलांगता ,
नहीं बनने पायेगी उनकी पहचान।।
खुलेंगे उनके लिए भी नए आयाम ,
प्रतीक्षा है जल्दी आना नए विहान !!
