एक नहीं दो दो मात्राएँ
एक नहीं दो दो मात्राएँ
एक नहीं दो-दो मात्राएँ,नारी हूँ मैं नारी हूँ,
पुरुषों को जिसने जन्म दिया, मैं ऐसी सिरजनहारी हूँ।
घर के सभी काम करती, पर कोई वेतन नहीं लिया,
सबके चेहरों पर खुशी देख, उसको ही वेतन समझ लिया।
बच्चे और पुरुष सभी हफ्ते में, छुट्टी भरपूर मनाते हैं,
माँ और पत्नी के हिस्से में, कुछ अधिक काम आ जाते हैं।
परिवार के लोगों की पसन्द की फरमाईश पूरी करतीं,
सब काम खुशी से करती हैं, माथे पर शिकन नहीं धरतीं।
त्यौहार कोई आ जाए तो, तब काम बहुत ज्यादा होता,
दिन भर फिरकी सी घूमती हैं, इक पल आराम नहीं मिलता।
फिर भी नादान पूछता है, हम दिन भर क्या करती रहतीं,
भर जाएगी पूरी काॅपी,लिखने बैठें... हम क्या करतीं।
मैं फुल टाइम वर्किंग वूमेन, पति की पर्सनल सेक्रेट्री हूँ,
घर की आया हूँ,महरी हूँ, और महाराजिन भी हूँ।
पति के लिये मैं मित्र, प्रेमिका रम्भा और मेनका हूँ,
जीवन के इस रंगमंच की सबसे बड़ी नायिका हूँ।
कहने को तो मैं रानी हूँ, सब समझें मुझे नौकरानी,
अपनी पर आ जाऊँ तो,अच्छे अच्छे भरते पानी।
मर जाए किसी की पत्नी, पति फौरन विवाह कर लेता है,
बच्चों को पालने की खातिर, सहयोग नारी' का लेता है।
नारी के सहयोग बिना, बच्चों को नहीं पाल सकता
दफ्तर को भले सँभाल सके, बच्चों को नहीं पाल सकता।
नारी तो निपट अकेली भी, हर बाधा से लड़ जाती है।
घर की खुशियों की खातिर वो,चुपचाप गरल पी जाती है।
मत समझो इसको कायरता,हम नारी शक्ति स्वरूपा हैं।
हम सिरजन भी करती हैं, तो दुष्टों की काल स्वरूपा हैं।