एक कड़वा फल देता पेड़
एक कड़वा फल देता पेड़
मैं समझती थी
उसे एक खुशबू से महकता
फूल
वह तो एक कड़वा फल देता
पेड़ निकला
बहुत कसैला है
बड़ा ही जहरीला है
बाहरी आवरण है सुंदर
भीतर से है मैला
तन सुंदर हो
मन विषैला
वाणी नीम के पत्तों सी
कटु और
व्यवहार हठीला तो
मधुर सम्बन्धों की
झिलमिलाती
रोशनी बिखेरती
लड़ियों का
कोई बुझे तो
आखिर कैसे लगेगा
मेला
अपमान की मार
बिना बात
लगातार
बार बार
कोई क्यों खायेगा
आखिर कितने वार
झेल पायेगा
एक बुझती सी सांसों के
पुलिन्दे का रेला।