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Kaushik Dave

Abstract

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Kaushik Dave

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एक द्वंद

एक द्वंद

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कविता कविता में हुई अनबन,

कैसीे मैं लिखुं कविता ?

सोच सोच के कविता घबराई,

सोचा खुद पे लिखुं कविता ?


कवि की कल्पना से लिखुं ?

या कामर्शियल तरीके से लिखुं ?

ह्रदय से निकलती हैं कविता,

कवि की कलम से हैं कविता,


शुकुन देती है कविता,

दिल में बसती है कविता,

थीम पर कैसे लिखुं कविता ?

कामर्शियल बन जाती हैं कविता,


ऐसी ना चाहिए कविता !

दिल से लिखुं कविता,

सब को भा जाए कविता,

वाह वाह करके लोग बोलें,


कैसी बनती है कविता ?

मुस्कान करती है कविता,

कविता की कविता से,

अब अच्छी बनती है कविता।


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