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Minal Aggarwal

Abstract

4  

Minal Aggarwal

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एक दूसरे पर निर्भर

एक दूसरे पर निर्भर

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मैं तुम पर 

निर्भर हूं लेकिन 

कुछ हद तक 

तुम मुझ पर भी निर्भर हो 

मनुष्य रूप में मेरा क्या 

उपयोग गर 

समय रहते 

मैं किसी के काम न आ 

सकूं 


मेरे कारण आये 

किसी की आंख में 

आंसू तो 

यह मैं कैसे बर्दाश्त कर 

पाऊं 

प्रकृति की तरफ 

आंख उठाकर देखो 

कैसे सब कुछ सहकर भी 

मुस्कुराती रहती है 


अपने दोनों हाथ फैलाकर 

चारों तरफ 

सबको खुशियां लुटाती ही 

रहती है 

मौसम की मार झेलती है 

हर किसी की मार, 

दुत्कार और 

अपमान सहती है 


लेकिन फिर भी 

हर किसी के लिए 

जितना इससे बन पाता है 

करना चाहती है 

बदले में कुछ नहीं चाहती 

प्रकृति जीवनदायिनी है 


एक मां की तरह 

अपने बच्चों का पेट पालती है 

उन्हें खाना खिलाती है 

पानी पिलाती है 

पालती पोसती है 

हम मनुष्य जाति के लोग 

असंख्य जीव जंतु 

इस पर निर्भर हैं 

इसका आभार माने या 


न माने पर 

इसके अहसानों तले 

दबे हैं 

हम प्रकृति पर निर्भर हैं 

हम सभी एक दूसरे से 

बंधे हैं 

जुड़े हैं 

एक दूसरे पर निर्भर हैं


किसी पर किसी की 

निर्भरता को 

स्वाभाविक रूप से लें

उसकी सहायता करें 

आपसी बंधनों को मजबूत करें 

उन्हें काटे नहीं।


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