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Manoj Kumar

Abstract

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Manoj Kumar

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एक बूँद

एक बूँद

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आँसू के एक बूँद

इतना गरम क्यों?

पता नहीं...!

क्या आँखें आँगीठी हैं।

जो आँसुओं को खौला रही हैं।

जब रिश्ता टूटता है;

तब! कैसे छलकते हैं

जैसे....!

मटके लुढ़क गए हो

आँगीठी से..

इतना गरम

इतना पानी है,

ये आँखों वाली मटके में

जो वियोग में गर्मा रही हैं।

थोड़ा लुढ़कने पर..

टिपटिपाते हैं पानी

मात्र एक बूँद..

इतना गरम कैसे होता हैं।

आश्चर्यचकित में हैं हम!

पता नहीं...

प्यार बाँधते समय,

धाराएं सुसुप्त हो जाती हैं।

परन्तु बिछड़ने पर..

इतनी तेजी से क्यूँ

कितनी रफ़्तार हैं इसमें 

यार बोला!

साथ नहीं रहूँगा ,

तो आँसू उठ जाते हैं।

इतनी तेजी से बहते हैं,

गरम- गरम क्यूँ..

केवल एक बूँद ,

इतने गरम होते हैं

तो सारे बूँद कैसे होंगे !

बड़ी आश्चर्यचकित बात हैं।

 किसी से बिछड़ने पर ग़म की,

रात ही रात हैं!

एक बूँद इतना गरम क्यों??



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