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Phool Singh

Tragedy

4  

Phool Singh

Tragedy

एक भयंकर मंजर

एक भयंकर मंजर

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धरती कांपी, अंबर कांपा, कांप रहा है जग-संसार

घर-घर है मटियाले चूल्हे, कौन लगाएगा भवसागर पार||


संक्रमण की लहर है फैली, छूटी, रोजी-रोटी, घर-दरबार 

कैसे होगा कर्तव्यों का निर्वाह, न धन की कोड़ी एक भी पास||


शिक्षा मंदिर सभी बंद है, बंद, सारे धर्म-मंदिर द्वार  

अशिक्षित मानव पशु समान है, कौन बनेगा ज्ञानाधार||


शक्ति बनती संगठन सबकी, शुद्ध, सोच-विचार और हृदय साफ 

निस्वार्थ हो अपनी भावना, समस्या, समाधान के खुलते द्वार||


मीठी वाणी, प्रेम की शिक्षा, अपने-पराये जब होंगे साथ 

संकट, आपदा छोटे दिखते, होता, चिंतन-मंथन सबके साथ|| 


किस करनी का दंड न जाने, झंझावातों से, धीर-वीर न होते उदास 

कर्मठ हो समाधान ढूंढते, रख धैर्य, शांति, आत्म-विश्वास||


तन, मन, धन सब नश्वर वस्तु, ऐसे में होता ये एहसास

प्रकृति अपना खेल खेलती, ब्रहामांड पर उसका एकछत्र राज||


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