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ADITYA KRISHNAA

Tragedy

4.6  

ADITYA KRISHNAA

Tragedy

एक बात

एक बात

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बात ये कहनी है ज़रुरी 

या समझ लेना मजबूरी,

दिल दहल अब जाता है

जब अख़बार सुबह घर

आता है।

विभत्स बातें और समाचार

लो आज हुआ फिर है

बलात्कार,


मिल जाती है रोज़ ये ख़बरें

शर्म से झुक जाती हैं नज़रें,

न दिल्ली की न कठुवा की

हैदराबाद न बिहार की

है बात ये देवियों पर हो रहे

अत्याचार की।।


थोड़ी सी नटखट थोड़ी नादान

माँ-पापा की बसती उसमें थी जान,

सपने थे उसके कुछ थे अरमान

पाने को मंज़िल वो अपनी,

पहुँची थी एक शहर अनजान ।


आई फिर एक मनहूस रात थी

राहें सारी थी सुनसान,

चल रही मन में बस एक बात थी

रक्षा करना हे भगवान ।।

चंद कदम की दूरी पर ही,

मिले उसे थे दो इंसान

देख अकेली लड़की राह पर,

क्यूँ बन बैठे थे वो हैवान?


हुई मानवता थी फिर शर्मसार

स्वप्न सारे हुए तार-तार,

इज़्ज़त उसकी सारी रात

लुटी गई थी बार-बार,

वो रोई थी चिल्लाई थी

दे बहन का वास्ता वो, 

कई बार गिड़गिड़ाई थी

हवस भरी हैवानियत ने,

सुनी कर दी एक भाई की

कलाई थी।


देख ऐसी दरिंदगी को

छोड़ चली थी जिंदगी वो,

संग छोड़े थे कुछ सवाल

कि कब थमेगा बहन बेटियों संग,

हो रहा ये कुकृत्य हाल?

हे नारी है नम्र निवेदन!

बन काली धर खप्पर ढाल

आ जाना तुम बन के काल,

करना जो चाहे सतीत्वहरण

दे देना तुम तत्काल मरण।।।


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