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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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एक और खूबसूरत दिन

एक और खूबसूरत दिन

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आज एक और

खूबसूरत दिन

प्रकृति का जीवन को

अद्भुत उपदेश।


कुछ देते हुये

सूरज का आगमन

कुछ कहते हुये

हवाओं की सरगोशी


कुछ सुनाते हुये

परिन्दों झुंड

जिधर भी नजर जाती है

शब्द झर रहे हैं

आवाजें बिखर रही हैं


लग रहा है आज का ये दिन

पहने हुये बसंती रंग

उपदेश दे रहा है


और कह रहा है

सब बोले मेरे संग।

सचमुच पूरा

परिवेश ही उसके

रंग में रंगा हुआ

गुनगुना रहा है

उसी का उपदेश।


बोल हैं तुम मनुष्य हो

धुनि है गुमनाम

गायक है प्रकृति ही

और संगत है समय की।


सचमुच कितना

अच्छा लग रहा है

आज का ये होता हुआ दिन

हमसे कहता हुआ

तुम मनुष्य हो।


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