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SUNIL JI GARG

Abstract Drama Others

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SUNIL JI GARG

Abstract Drama Others

एक अजीब सा सपना

एक अजीब सा सपना

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वहाँ से यहाँ तक आ पहुँचा, आखिर मैं ही

ये समय जो एक के ऊपर एक होकर 

मानो नोड्यूल्स के छल्लों की तरह 

मुझ पर लिपटता जा रहा है


दरअसल भूख ज्यादा लगी थी मुझे 

तभी तो बेल्ट के छेदों का नम्बर 

क्रमशः बढ़ता जा रहा है,


अरे बाबा! रुको तो 

रचना कोई ऐसे बनती है 

वो लोग कहते हैं न 

इश्क पर जोर नहीं


कहूँगा पर मैं तो यूँ ही 

कला पर जोर नहीं


ओह ! नहीं 

दरअसल मेरी नजर जा रुकी है उस को

ने पर 

पता लगता है इश्क भी एक कला है (शायद बला है)

तभी तो जूते की ठोकरें जा लगी हैं जूतियों को 

अब भला कौन जाकर समझाए,

इन अभिनेता और अभिनेत्रियों को 


कला-बला के किस्से के बीच भी 

मेरी बेल्ट सरकती ही रही

सच! अगर किसी पेट भरे आदमी की 

सूरत देख लूँ लो...........

पर नहीं, उससे पहले तो मैं

और अकेला मैं (अकेला नहीं हूँ तो क्या हो ?)

सब छोड़-छाड़ कर

चम्मचें और थालियाँ बजाने जा पहुँचा



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