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Subhasmita Sahu

Abstract Others

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Subhasmita Sahu

Abstract Others

एक अजब सी कश्मकश

एक अजब सी कश्मकश

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 ये ज़िन्दगी मेरी सपनों के तुम 

और तुम्हारे हक़ीक़त के हम में बड़ी फरक है।


मेरा कल मेरा आज नहीं है 

सफर मेरा आसान या मंज़िल मेरी पास नहीं है 


सुलझाने चली थी मैं तेरी मकड़ी के जाल को 

उलझ के रह गयी अपनों के सपनों में 


दर्द की सर्द हवा ने आँखों में ओस जमा दी है 

कोई इसे घमंड और कोई इसे बेरुखी के नाम दे रखे है।


जुगाड़ करना पड़ता है हमेशा

अपने हिस्से की ख़ुशी का।


उदासी नहीं ना ही अफ़सोस है 

ना ही किसी फिक्र की जिक्र है 


अगर जीना ही ज़िन्दगी है 

तो इस कला में माहिर है हम 


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