किस दिशा में चल पड़े हैं हम ...... ?
किस दिशा में चल पड़े हैं हम ...... ?
ज़िन्दगी के रेलगाड़ी कोरोना के प्रभाव से जो थोड़ी सी धीमी पड़ गई तो मुझे फुरसत के दो पल मिल गये। चाय के प्याली के संग कुछ यादें और कुछ इरादे आपस में टकराने लगें। बचपन में माँ और बाबूजी कहते थे - खूब मेहनत करके अच्छी नौकरी कर लो फिर तो चालीस साल ज़िन्दगी के खुशियां ही खुशियां होगी।
आज फर्स्ट क्लास डिग्री है, नौकरी भी है, पर महत्वपूर्ण सवाल ये है ---क्या हम खुश हैं ? इंटरनेट, मोबाइल, वीडियो कॉल सब की भरमार है, पर महत्वपूर्ण सवाल ये है---क्या अपनों के दिल तक पहुँच ले ऐसा कोई तार है ? माउस के एक क्लिक से सारी दुनिया का समाचार है, पर महत्वपूर्ण सवाल ये है ---क्या बगल वाले फ्लैट में रहनेवाले शर्माजी है कि वर्माजी इसका कोई खयाल है ?
शहर के बीचों बीच, ऊँची इमारत में रह के अपनी सफलता की पीठ थपथपाते है ,पर महत्वपूर्ण सवाल ये है---क्या अपने अंदर की बुराइयों से लड़ कर सफल होने का कभी प्रयास किये है ? बिज़नेस क्लास में सफर करने की ताउम्र इरादे रखते है, पर महत्वपूर्ण सवाल ये है---छोटी सी एक हार से टूट कर जीवन के सफर को पल में ही क्यों समाप्त कर लेते है ? बस हम किस दिशा में चल पड़े है ?---इसका विश्लेषण होना आज जरूरी है। आगे चल के इस सोच को एक पहल बनाने की मेरी गुज़ारिश है, अन्यथा वक़्त कहेगा कि हर माता पिता बच्चों को झूठी सिख और दिलासा देते है।
