एक अधूरी दास्ताँ.....
एक अधूरी दास्ताँ.....
हाँ वो तब भी मुस्कुरा रही थी।
जब छोरा था तूने उसे किसी और क़े लिए।
हाँ वो तब भी अपना ग़म छुपा रही थी ।
जब तोड़ा था तूने उसका दिल किसी और क़े लिए।
हाँ वो तब भी अपने अल्फ़ाज़ दबा रही थी।
जब कह रहा था तू दूर जा रहा हूँ किसी और क़े लिए।
हाँ वो तब भी वो बिखरे लमहें समेट रही थी।
जब मिटा रहा था तू उसकी यादें किसी और क़े लिए ।
हाँ वो तब भी अपनी पलकें भीगा रही थी ।
जब छुपा रहा था तू उसका अस्तित्व किसी और के लिए।
हाँ वो तब भी उन गलियों से गुज़र रही थी
जब घुमा रहा था तू उसे किसी और के लिए।