एहसान ज़िंदगी का
एहसान ज़िंदगी का
ग़म सारे भूलाकर मुस्कुराती हूँ, फूलों की तरह।
दिन भर चहकती रहती हूँ, चिड़ियों की तरह।
रौशनी बिखेरती हूँ, उम्मीद के दीये की तरह।
कैसे चुकाऊँ मैं कर्ज़, है एहसान ज़िन्दगी का।
रिश्तों की महकती बगिया में, ख़ुशहाल परिवार।
अपनों के ख़ूबसूरत साथ से, छँटता रहा अंधकार।
राह की उबड़ खाबड़ पगडंडियों में भी मिला प्यार।
कैसे निभाऊँ मैं फ़र्ज़, है एहसान ज़िन्दगी का।
सपनों के संग जीना और उसे पाना सिखाया।
राह के काँटों को चुनना और चलना सिखाया।
ज़िन्दगी तूने ही तो मुझे प्यार बाँटना सिखाया।
कैसे भूल जाऊँ ये सब, है एहसान ज़िन्दगी का।