दयालुता
दयालुता
देख पराई पीड़ा को भी
भरता जिसका अंतर्मन है ।
विह्वलता उन्मूलन की भी
बनाती उसको अंशुमन है ।।
दयालुता सतत प्रवाहित
एक निर्मल भाव धारा है ।
कर समवत् समाहित
कितनों का जीवन सँवारा है ।।
दया व्याप्त जगत में
प्रकृति का शुचि संदेश है ।
और मानव सभ्यता में
संस्कृति का अनुपम उपदेश है ।।
दिनकर स्वयं जलकर भी
देता जग को प्रकाश है ।
हिमकर तम से टकराकर भी
करता रोशन आकाश है ।।
वृक्ष स्वयं नहीं खाते फल
पीती नहीं नदियाँ जल है ।
धरती उगाती नित फसल
पर सेवा में ही जन्म सफल है ।।
जीवन मिला मानव का
जिसे इंसान स्वयं बनाना है ।
संरक्षण करें प्रति जीवजन्तु का
मन में भाव दया का जगाना है ।।
दे सकें निवाला भूखों को
ठिठुरें नहीं कोई सर्दी में है ।
कर सकें सनाथ अनाथों को
अक्षुण रहे अस्मिता जो गर्दिश में है ।।
बुजुर्गों का सदा बने सहारा
करना मात-पिता की सेवा है ।
अपनों से न करें किनारा
ये तो सत्कर्मों की मेवा है ।।
हो सर्वसुलभ प्रभूत दयालुता
ये श्रद्धा संवेग हमारा है ।
जागृत हो सच्ची मानवता
बनती फिर वो सर्व दु:खहारा है ।।
