दया _धर्म
दया _धर्म
दया धर्म का मूल है, जीवन का है सार।
सार्थक तब हो जिन्दगी, सुख का तब बौछार।।
दया धर्म का मूल है,इससे ही संसार।
जीवों के प्रति प्यार हो,पाएं मधुर दुलार।।
दया धर्म का मूल है,ममता मय हों आप।
मनुज जन्म है तब सफल,करिए कभी न पाप।।
दया धर्म का मूल है, इसको रखिए साथ।
गुलशन सा है यह धरा, पुण्य रखें निज हाथ।।
दया धर्म का मूल है, मन में हो अनुराग।
दुष्ट भाव को त्याग दें,बनिए जैसे बाग।।
