दूरियां ही खुशियां है
दूरियां ही खुशियां है
आँखों से आंसू छलक पड़ते हैं
जब हाथ की कलाई सुनी दिखती है ।
बहना तेरे हाथ की मिठाई पर,
आज भी मुख से लार टपक पड़ती है ।
वो ठिठोली, वो नारियल की चोरी,
अपनी ही पसंद की राखियां खरीदवाना,
चुपचाप से मिठाई उठाकर खा जाना,
सचमुच आज बहुत खल रहा है तेरा न आना।
हां तेरे आशीषों की मन से,
मन की डोर बांध ली है
कुछ और तो नहीं,
बाहें फैलाकर प्रभु से तेरे लिए
खुशियों की पिटारी मांग ली है।
यह वक्त ही कुछ ऐसा है,
जहां दूरियां ही तेरी खुशियां है,
सलामती की दुआएं हैं,
यह दौर भी गुजर जाने दे
अंधेरे क्या प्रभात को रोक पाते हैं
खुशियों के मंजर लौटकर जल्द जाते हैं।
