STORYMIRROR

Asha Pandey 'Taslim'

Abstract

4  

Asha Pandey 'Taslim'

Abstract

दूरबीन

दूरबीन

1 min
414


सोने,चाँदी और लोहे में

खरा और खोटे का

कसौटी,पारखी नज़र

दुनिया बीच फ़रेब

कसमसाता,कराहता

अंदर से गुज़रता आदमी

चाहिये पनाह

और पनाह ख़तरनाक है

बाजा़र में अंधों पर

आँख वालों की सत्ता

ठगने वाले और ठगे जाने वाले

तीन सूरत एक ही

कद,वज़न,रंग का फ़र्क

घोडा़,गधा,ट्ट्टू

मजे़ में कौन?

वही बस

ईंटों की पहाडी़ पर रहता है

गिद्ध कहना गलत होगा

ठग कहना भी पाप ही होगा

चालाकी नहीं फ़न कहते हैं

बेवकूफ़ लोग

उसी के छज्जे से पन्नी बाँध

महल को निहारते सो जाते हैं

कुत्ता दोनों के पास है

एक नाले झपने पर

और दूसरा सोफे पर बैठा है

सर्दी,खाँसी,बुखार

इधर भी है और उधर भी

आग सुलगती है

लकडी़ सस्ती महंगी

राख़,राख़

पानी,पानी

और मायूस कुछ लोग।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract