दूर कहीं दुनिया में
दूर कहीं दुनिया में
दूर कहीं दुनिया में रहती तो होगी कहीं
सच्चाई, ईमानदारी
और मासूमियत
जो डरकर छुपी हुई है
मक्कारी और धूर्तता से ।
शायद वहीं पर कहीं
भलमनसाहत का भी
रहवास हो सकता है
क्योंकि ये सब आजकल
इधर दिखाई नहीं देती हैं
स्वार्थ की खाई में
झूठ, बेइमानी का जंगल
दिनों-दिन विशाल हो रहा है
जहां मानवता और इंसानियत
हिंसा से रोज लहूलुहान हो रही हैं ।
अपनापन विलुप्त सा है
रिश्तों का कत्ल करके
विश्वासघात अट्टहास कर रहा है ।
ठगी की तलवार
अपने म्यान से निकलकर
तांडव मचा रही है
नफ़रत की गोली
हिंसा का कंधा पाकर
प्रेम का सीना छलनी कर रही है ।
देशद्रोहियों ने
अभिव्यक्ति की आजादी के भाले से
देशभक्ति की आत्मा को
कुचल कर रख दिया है ।
जो कुछ नजर आ रहा है
वह केवल और केवल
झूठ , सफेद झूठ और केवल झूठ ।
इसलिए सब अच्छे अच्छे गुण
कहीं दूर , बहुत दूर
जाकर अन्तर्ध्यान हो गए हैं
यहां पर साम्राज्य कर लिया है
मक्कारी , लंपटता और बेशर्मी ने
और ठाठ से सत्तासीन हैं
वासना , लिप्सा और कामनाओं के
वस्त्र पहनकर
ग़लत इरादों को ढक लिया है
इस दुनिया में जो नजर आता है
वह छल कपट षड्यंत्र
और धोखाधड़ी ही है जो
सन्नाटे की तरह पसरा हुआ है
यहां वहां , जहां तहां , हर जगह ।।
