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Priyanshu Kumar

Abstract

4.7  

Priyanshu Kumar

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दूर होकर भी क्यों पास है

दूर होकर भी क्यों पास है

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दूर होकर भी क्यों इतना पास है?

तू है तो पराया

फिर भी क्यों इतना ख़ास है?

भरी अंधेरी रात में 

रौशनी की एक आस है

दूर होकर भी क्यों इतना पास है ?


आज तो मन निराश है

एक तू ही उम्मीद की आस है

अलग है तू औरों से

इसीलिए दूर होकर भी पास है।


बादलों की ओट से निकलता 

तू एक ख़्वाब है

पाना चाहता जिसे

ये पूरी "कायनात" है

रात के अंधरों को रौशन

करता तू एक खास है

दूर होकर भी तू इतना पास है।


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