कुछ बातें
कुछ बातें
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कुछ बातें अनकही रह जाती है
शायद इस दिल से जुबां तक का सफ़र
नहीं भाता उन्हें ,
यह सोच ही पल पल खाता हमें
जब कहने को बहुत कुछ हो
पर ये वक्त क्यों सताता हमें
उस पुराने वक्त का कुछ ख़ास
हाथों से समय निकलने का वो एहसास
फिर से डरा जाता बार बार
क्या होगा अबकी बार
मिलेगी तुझे फिर से हार
या होगी सारी मुश्किलें पार
कभी ना कभी अनकही बातें बोलनी पड़ती हैं
जुबां पे लगी ज़ंजीरें तोड़नी पड़ती हैं
बस ये वक्त वक्त का खेल है
शायद ये दो विचारों का मेल है
कहीं बोलते बोलते देर ना हो जाए
जो मिलने की उम्मीद है
कहीं वो बस उम्मीदों का ढेर ना रह जाए।
