सिफ़र
सिफ़र
आज मेरे पास कोई "किस्सा" नहीं
शायद मैं खुद का "हिस्सा" नहीं,
निशब्द, स्तब्ध खड़ा उस मोड़ पर
"बेबस" मन को कहीं और छोड़ कर
चलता हुआ अनजाने डगर पर।
"सफ़र" से "सिफ़र" की ओर
शायद मिल जाए कहीं
इस अंधेरे का छोर,
होगा तब इस किस्से में
आख़िर कहीं रात से भोर।
आज मेरे पास कोई "किस्सा" नहीं
शायद मैं खुद का "हिस्सा" नहीं
लिए इस दिल में शोर
चलता रहा मैं "सिफ़र" की ओर।
