दुपट्टे में लपेटा हुआ उसका ख़त
दुपट्टे में लपेटा हुआ उसका ख़त


उसके मासूम से चेहरे पे,
थोड़ी सी घबराहट,
थोड़ी सी शर्माहट,
थोड़ी सी हड़बड़ाहट देखकर
मेरे दिल कि मुरझाई कली खिल आई थी,
इतनी सुन्दर लग रही थी वो मानो जैसे मुझमें एनर्जी भर आई थी,
दुपट्टे में लपेटकर कल ज़ब वो ख़त लायी थी।
मैंने उसे गले लगाया,
उसकी आँखों का पानी,
अपनी आँख से बहाया,
मेरी बाहों में टूटकर वो
चूर हो गई थी,
ऐसा कभी हुआ नही था,
जितना वो आज मजबूर हो गई थी,
बेइंतहा मोहब्बत करती थी वो मुझसे,
ये बात तब समझ आई थी,
दुपट्टे में लपेटकर कल ज़ब वो ख़त लाई थी!
उनके मासूम चेहरे को देखकर,
आईने आज भी सच बोलते थे,
हम ही थे जो उनपे शक़ करते थे,
पर हमसे वो तो आज भी बेशुमार इश्क़ करते थे,
उन्हें गले लगाकर,
अब तो सारी उम्र गुजारने कि बारी आई थी,
बेइंतहा मोहब्बत करती थी वो मुझसे,
ये बात तब समझ आई थी,
दुपट्टे में लपेटकर ज़ब वो ख़त लाई थी!