दुनिया मे बहुत घूम रहा हूं
दुनिया मे बहुत घूम रहा हूं
दुनिया मे बहुत घूम रहा हूं
अपने आप को ढूंढ रहा हूं
बहुत ही ज़्यादा टूट गया हूं,
आँसूओ में मोती ढूंढ रहा हूं
कभी तो हमें साहिल मिलेगा,
इसी उम्मीद से जूझ रहा हूं
दुनिया मे बहुत घूम रहा हूं
अपने आईने को तोड़कर,
पड़ोस में अक्स ढूंढ रहा हूं
में भी कितना नादान हूं,
पत्थरो में शीशा ढूंढ रहा हूं
अपने मृग कस्तूरी को,
क्यों में यत्र-तत्र ढूंढ रहा हूं
चराग़ से नहीं होती रोशनी,
खुद,की खुदी से होती रोशनी,
भीतर का द्वार बंद कर,
क्यों बाहर चाबी ढूंढ रहा हूं
दुनिया मे बहुत घूम रहा हूं।
