दुःख
दुःख
दुःख इतना था
उसकी जीवन में
की प्यार में भी
दुःख ही झलकता था।
उसकी आँखों में झाँका था
दुःख तालाब की पानी जैसा
ठहरा हुआ था।
जब उसे गले लगाया
पीठ पर घाव की निशान
की जैसी
दुःख देखा था।
जब प्यार के साथ
उसकी गालों को
चूमना चाहा
होठों पर
फूलों जैसी दुःख से
मुलाक़ात हुआ।
उसकी देह से
कपड़ा हटाने पर
दुःख उसकी चमड़ी साथ
लगा हुआ मुझे मिला।