दुःख सुख
दुःख सुख
दुखों को मैने बहुत सालों पहना
बहुत सम्भाला और बहुत सहेजा
हर पल संवारा पल -पल बढ़ाया
वक़्त-वक़्त पर उनको साफ़
करके नया बनाया
धोया इस्त्रि करके फिर
कड़क बनाया
कभी हो ना जाए धूमिल
एहसास हमेशा रखा
पुराना होते ही नया दुःख ले आती
फिर उसकी सार सम्भाल करती
ज़िन्दगी गुज़रती जा रही थी
और बोझ बढ़ाती जा रही थी
फिर साँस लेना भी हुआ मुश्किल
तब फेंक दिये उठा के सब
सोचा अब सुख पहनूँगी
जो होते हैं हल्के फुल्के
सम्भालने की ज़रूरत भी नहीं
नया बनाए रखना भी ज़रूरी नहीं
जब चाहा मुस्कुरा के नया ले लिया
पुरानी परछाईं छोड़ नयी रौशनी
आजमायी
तब जा के ज़िंदगी समझ में आयी