दुआ
दुआ
भीगी पलकें थीं,
पर होंठ मुस्कुरा रहे थे ।
उनको कुछ कुछ समझ रहे थे,
ज्यों ज्यों करीब हम उनके आ रहे थे।
देश के लिए मर मिटने को वे,
तो सरहद पर जा रहे थे ।
और हम आरती का थाल लिए,
दरवाजे पर उन्हें तिलक लगा रहे थे।
दिल से दुआ,
तमन्ना बनकर निकल रही थी ,
रहे सलामत सुहाग मेरा,
देश भी सलामत रहे,
दोनों में से किसी की भी,
क्षति ना हो।
बनकर विजेता वो आए,
मेरे साथ हर भारतीय ,
जीत का जश्न मनाए।।