दोस्ती को सलाम
दोस्ती को सलाम
पीछे मुड़कर स्कूल को करो याद
लो बचपन की बातों का स्वाद
वह नादान बदमाशियाँ, अल्हड़्पन की अठखेलियाँ
जैसे कल की हों कहानियाँ
आज कमी खलती है उस अनौपचारिकता की
बिना सोचे बोलने की और बिना पूछे टिफ़िन खाने की
इस दोस्ती ने ना देखा पैसा, ना पहचान
बिन मक़सद दोस्ती की थी यही शान
मझधार में जो छोड़ गये हमें
भूलेंगे नहीं कभी उनके साथ बिताये लम्हे
स्कूल छोड़े बीते ४४ साल
हैरान है दुनिया देखकर दोस्ती की यह मिसाल
जहां भी हो यारों , उठा लो एक जाम
५० साल नयी इस दोस्ती को , मिलकर करें सलाम