दोस्त
दोस्त
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यह शहर अनजान सा लगने लगा है
तू नहीं तो बेगाना सा लगने लगा है
वह चाय की टपरी वह गालिया आज भी भरे है
तू नहीं तोह सब कुछ बेजान सा लगने लगा है
लोग तो बहुत मिले तेरे जैसा दोस्त कहाँ है
मेरे गम मे किसी से भी लड़ने का जज़्बा कौन रखता है
बिन बोले सब कुछ तू जान जाता है
अरे पेग बनाने से सब कुछ तुझी ने तो सिखाया है
दोस्त ना हो तो किस बात की ज़िन्दगी
होश गुम ना हो जाए तो किस बात की तिशनगी
आज तक इस शहर मे कोई नहीं था अपना
अब तुम सब से ही तो बनता है परिवार अपना।