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Kanchan Pandey

Abstract

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Kanchan Pandey

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दोषी कौन है

दोषी कौन है

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आज शर्मसार है

कौन शर्मसार

इंसानियत का लूटा बाजार है

मत कहो मैं नहीं हूं

मत कहो मैं नहीं जानता 

क्या हो रहा है

क्यों हो रहा है

यहां सब समझदार है

इंसानियत का लूटा बाजार है

मिट गया संस्कार है

मां बाप लाचार

कौन जिम्मेदार है

इंसानियत का लूटा बाजार है


बदल गई है दुनिया या

बदल गए हैं हम

बिखरा हर परिवार

बुजुर्गों की बातें लगता अत्याचार है

आदत लगी आजादी की या

वाह अब आजाद सभी विचार है

किसकी है यह आदत

किसका यह ख्याल है

यह सभी के लिए सवाल है

क्यों लूटा बाजार है

इंसानियत का लूटा बाजार है


धृतराष्ट्र की भांति मत आंकों

मन की आंखों को साधो

विचारों पर करना होगा विचार है

फिर मत कहना कौन जिम्मेदार है

कहां हुई है चूक किससे

चकाचौंध ने फिर से धृतराष्ट्र किया 

क्या धृतराष्ट्र भी लाचार है

इंसानियत का लूटा बाजार है


कितनी बार लूटेगी अब द्रोपदी

कितनी बार सीता अब हरण होगा

क्या कलयुग में कुछ नहीं बचेगा

शर्मशार शर्म होगा

गांधारी की पट्टी खुली है

कुंती के मन में ना बात दबी है

चकाचौंध ने राह भटकाई

अब कर्म ही दर्पण होगा

क्या दर्पण भी शर्मशार है

चूक हुई है सबसे मानो

ना मानो तो अपना अपना विचार है

डूब गए जाने किस रंग में

गलती भी नहीं स्वीकार है

सृजन हार से क्या गलती हो गई

दिखावे का बहार है

सबका यही हाल है

इंसानियत का लूटा बाजार है



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