दोहे
दोहे
ढूंढ स्वयं के तू हृदय, अवसित करो विकार।
शुद्ध रहे यह तन बदन, पावन बने विचार।।
शीघ्र विवेक न खोइए, खुद पर हो विश्वास।
करो भरोसा नित स्वयं, कोई रहे न पास।।
नियम बिना जीवन नहीं, रखना इनको याद।
मुसीबतों में जब पड़ो, करो न तब फरियाद।।
नित ईश्वर सेवा करो, प्रतिदिन करना याद।
सबकी सुनते हैं वही, बिना करें फरियाद।।
रोज करो आराधना, प्रतिदिन हो अभिषिक्त।
ईश मिलन होगा तुम्हें, करो नहीं अतिरिक्त।।
सत्य की जब हो लड़ाई, कलम बने हथियार।
जीत सुनिश्चित हो तब, कर दे बेड़ा पार।।
साथी कलम न छोड़िए, ताकत बने अपार।
इसके बल से चल पड़े, सभी तरफ व्यापार।।
नित कालिंदी पूज कर, दूर रहेगा काल।
रहे सुरक्षित प्राण तब, यही बनेगा ढाल।।
चिंता करते आप क्यों ,चिंता चिता समान।
चिंतन करिये राम का, करते कष्ट निदान ।।
साधु संत की भांति ही, चिंतन हो दिन रात।
ईश्वर रक्षा फिर करें, नहीं मिले आघात ।।
नित्य करो आराधना, हर दिन हो भजन।
निस्वार्थ भाव से रोज, प्रभु का हो चिंतन।।
तट कालिंदी बैठ के ,बंसी बजाय श्याम।
तारणहारे श्याम है, पावन गोकुल धाम।।
पड़े जरूरत ठंड में, कंबल करना दान।
विपदा में ना साथ दे, व्यर्थ समझना ज्ञान।।
