दो मुक्तक
दो मुक्तक
रिवाज़-ए-इश्क ही है ,चाहत-ए- कहानी होना।
नामुमकिन है जहां में ,इश्क़ का ला-फ़ानी होना।
वादे-कसमें सब किस्से हैं ,पल भर के खूबसूरत
जब कुदरत बदलती है इश्क़ क्यों जावेदानी होना।
इश्क़ में कौन चाहे, हीर, लैला या मस्तानी होना।
सोहनी सी घड़े के सहारे पार दरिया तूफानी होना।
इश्क़ पर कहो कोई कैसे छिपाए, नन्हे दिल में,
इसकी खुशबू का बिखेरना लिखा ला-मुतनाही होना।