दो जून की रोटी
दो जून की रोटी
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पसीने से लथपथ काया होती,
श्रम दिन भर का सँजोती
तब जाकर के मिलती है
दो जून की रोटी।
कभी ईद का गट्ठा उठाया,
कभी नींव है खोदी
तब जाकर के मिलती है
दो जून की रोटी।
कभी मिली दुत्कार तो
कभी सहानुभूति समेटी
तब जाकर के मिलती है
दो जून की रोटी।
झाड़ू, पोछा बर्तन धोए,
दिन रात इन्हीं कामों में खोए,
तब जाकर के मिलती है,
दो जून की रोटी।
कभी ईमान का इम्तिहान,
कभी सहना पड़ता अपमान।
तब जाकर के मिलती है
दो जून की रोटी।
वर्ग भेद की खाई चौड़ी
कीमत अपनी है न दमड़ी
बस अपने दोनों हाथों मिलती
दो जून की रोटी।