दिया उम्मीद का
दिया उम्मीद का
नौकरी है तो परेशान, नौकरी ना मिले तो परेशान
फ़िर ये कौन लोग हैं जो लाइफ इज ब्यूटीफुल लिखते हैं
आसान है क्या...किसी के शर्तों पे काम करना
आसान तो नहीं ... माँ -बाप के कंधो पे बोझ बनना।
ये मुश्किल ही तो है कि बेजार सी ज़िंदगी जिए जा रहे हैं
साँस लिए जा रहे हैं... दर्द सहे जा रहे हैं
कहने को तो बहुत कुछ है मगर होंठ हैं कि सिल गए हैं
कुछ बोले... तो कहीं कोई गलत मतलब ना निकाले।
कोई अपने अंदर के अहसास को कहाँ तक संभाले
जी चाहता है... चीख - चीख कर दुनिया को बताऊँ
सुन लो सभी..कोई गुलाम नहीं हैं हम किसीके...
मगर
बंद कमरे में ही सिसकियां खुद को ही सुनाते हैं।
इतनी बेरहमी से अधिकारों की हत्या की जा रही है
हमारी जायज मांगों की चीख खूनी आँसू रो रही है
इसकी चित्कार सिर्फ भुगतने वाली कानो तक ही सिमटी हैं
दिल चाहता है कि राम राज्य लौट कर आए।
सबके दुसाध्य मुश्किलों को निष्पक्ष सुना जाए
उसके उपाय पे गौर फरमाया जाए... गर ऐसा हुआ
वो दिन दूर नहीं जब देश का स्वर्णिम गौरव लौट कर आएगा
तमसो माँ ज्योतिर्गमय यह धुन विश्व पटल पर गाया जाएगा
इंतजार है, वो दिन कब भारत देश में आएगा
खुशियों से भरा त्यौहार, हर गलियों में साथ मनाया जाएगा।